"आत्म-कल्याण का मार्ग स्वयं के भीतर है, तीर्थंकरों की भूमि मध्य प्रदेश हमें उसी ओर इंगित करती है।"
अतुल्य मध्य प्रदेश: जैन धर्म के पवित्र तीर्थों की दिव्य यात्रा
भारत का हृदय कहलाने वाला मध्य प्रदेश (MP) सिर्फ अपनी प्राकृतिक सुंदरता और वन्यजीवों के लिए ही नहीं, बल्कि एक अद्वितीय आध्यात्मिक विरासत के लिए भी विश्वभर में जाना जाता है। जैन धर्म के अनुयायियों के लिए, यह भूमि मोक्ष और तपस्या का एक पवित्र केंद्र है, जहाँ कई तीर्थंकरों ने जन्म लिया, केवलज्ञान प्राप्त किया और निर्वाण को प्राप्त हुए। मध्य प्रदेश के कोने-कोने में प्राचीन और भव्य जैन मंदिर, इतिहास, कला और अटूट आस्था का संगम प्रस्तुत करते हैं। यह विस्तृत लेख आपको मध्य प्रदेश के ऐसे ही छह प्रमुख जैन तीर्थ स्थलों की यात्रा पर ले जाएगा, उनके महत्व, वास्तुशिल्प और वहाँ पहुँचने के मार्गों की जानकारी प्रदान करेगा।
१. कुंडलपुर महातीर्थ, दमोह: जहाँ 'बड़े बाबा' विराजमान हैं
दमोह जिले में स्थित कुंडलपुर दिगंबर जैन संप्रदाय का एक अतिशय क्षेत्र है, जिसे कुंडलगिरी के नाम से भी जाना जाता है। यह क्षेत्र 63 भव्य मंदिरों का समूह है, जिसमें से मुख्य आकर्षण मंदिर क्रमांक 22, 'बड़े बाबा' का मंदिर है।
प्रमुख विशेषताएँ और महत्व
- अद्वितीय प्रतिमा: यहाँ भगवान आदिनाथ (पहले तीर्थंकर) की लगभग 15 फीट ऊँची, पद्मासन मुद्रा में स्थापित एक प्राचीन और विशाल प्रतिमा है, जिन्हें श्रद्धापूर्वक 'बड़े बाबा' कहा जाता है।
- वास्तुकला का वैभव: हाल ही में भव्य रूप से पुनर्निर्मित किया गया यह मंदिर आधुनिक और पारंपरिक जैन स्थापत्य शैली का अद्भुत मिश्रण है, जो दूर से ही पर्यटकों को आकर्षित करता है।
- धार्मिक आस्था: माना जाता है कि यहाँ भगवान महावीर का समवशरण आया था और यह स्थल श्रीधर केवली की निर्वाण भूमि भी है, जो इसकी प्राचीनता और पवित्रता को दर्शाता है।
तीर्थ यात्रा के लिए मुख्य बातें
- यह क्षेत्र अपने शांत और प्राकृतिक वातावरण के लिए जाना जाता है। भक्तों के ठहरने और भोजन (भोजनशाला) की उत्तम व्यवस्था यहाँ उपलब्ध है।
- वर्ष 2022 में यहाँ 'पंचकल्याणक महामहोत्सव' का आयोजन किया गया था, जिसने इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जैन धर्म के सबसे महत्वपूर्ण स्थलों में स्थापित किया।
कुंडलपुर कैसे पहुँचें (How to Reach)
- वायु मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा जबलपुर (लगभग 155 कि.मी.) है, जहाँ से टैक्सी या बस द्वारा कुंडलपुर पहुँचा जा सकता है।
- रेल मार्ग: सबसे निकट का रेलवे स्टेशन दमोह (लगभग 37 कि.मी.) है। दमोह स्टेशन पर उतरकर स्थानीय टैक्सी, बस या ऑटो-रिक्शा आसानी से उपलब्ध होते हैं।
- सड़क मार्ग: कुंडलपुर, दमोह-हटा राज्य राजमार्ग पर स्थित है और सागर, छतरपुर, जबलपुर जैसे प्रमुख शहरों से नियमित बस सेवाओं द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।
२. सोनागिरि, दतिया: 'स्वर्ण पर्वत' पर 77 मंदिरों का समूह
दतिया जिले में स्थित सोनागिरि, जिसका अर्थ है 'स्वर्ण पर्वत', दिगंबर जैन संप्रदाय का एक सिद्ध क्षेत्र है। यह एक पहाड़ी पर स्थित 77 श्वेत मंदिरों का एक समूह है, जो दूर से ही अत्यंत मनमोहक दृश्य प्रस्तुत करता है।
प्रमुख विशेषताएँ और महत्व
- सिद्ध क्षेत्र: जैन मान्यताओं के अनुसार, यहाँ से नंगानंगकुमार और साढ़े पाँच करोड़ मुनियों ने मोक्ष प्राप्त किया था, जिसके कारण इसे सिद्ध क्षेत्र कहा जाता है।
- 77 श्वेत मंदिर: यहाँ के सभी मंदिर श्वेत संगमरमर से निर्मित हैं, जिनकी वास्तुकला बुंदेलखंड की पारंपरिक शैली और जैन स्थापत्य का सुंदर मिश्रण है।
- मुख्य मंदिर: पहाड़ी पर स्थित मुख्य मंदिर भगवान चंद्रप्रभ (8वें तीर्थंकर) को समर्पित है, जिनकी 11 फीट ऊँची भव्य प्रतिमा स्थापित है।
तीर्थ यात्रा के लिए मुख्य बातें
- चूँकि मंदिर पहाड़ी पर स्थित हैं, यहाँ सीढ़ियों द्वारा ही पहुँचा जा सकता है। शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिए डोली की व्यवस्था भी उपलब्ध रहती है।
- रात्रि विश्राम के लिए यहाँ कई धर्मशालाएँ और भोजन की व्यवस्था उपलब्ध है, जिससे तीर्थयात्रियों को किसी प्रकार की असुविधा नहीं होती।
सोनागिरि कैसे पहुँचें (How to Reach)
- वायु मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा ग्वालियर (लगभग 60 कि.मी.) है, जहाँ से टैक्सी द्वारा आसानी से सोनागिरि पहुँचा जा सकता है।
- रेल मार्ग: सोनागिरि का अपना एक छोटा रेलवे स्टेशन (Sonagiri Railway Station) है, जो ग्वालियर-झाँसी रेल लाइन पर स्थित है।
- सड़क मार्ग: यह राष्ट्रीय राजमार्ग 44 (NH 44) के पास स्थित है और दतिया, ग्वालियर और झाँसी से उत्कृष्ट सड़क नेटवर्क द्वारा जुड़ा हुआ है।
३. बावनगजा (चूलगिरि), बड़वानी: विराट एकाश्म प्रतिमा
बड़वानी जिले में सतपुड़ा पर्वतमाला की पहाड़ियों के बीच स्थित बावनगजा एक प्राचीन अतिशय क्षेत्र और सिद्ध क्षेत्र है। इसका नाम यहाँ स्थित भगवान आदिनाथ की 52 गज (लगभग 84 फीट) की विशाल प्रतिमा के कारण पड़ा है।
प्रमुख विशेषताएँ और महत्व
- 52 गज की मूर्ति: यह भगवान आदिनाथ की दुनिया की सबसे ऊँची एकाश्म (Monolithic) प्रतिमाओं में से एक है, जिसे एक ही चट्टान को काटकर बनाया गया है।
- चूलगिरि की महिमा: पहाड़ी पर 11 प्राचीन मंदिर स्थित हैं, जिनमें कई मुनियों ने मोक्ष प्राप्त किया था, जिससे यह एक सिद्ध क्षेत्र बन गया है।
- प्राकृतिक सौंदर्य: यह स्थान घने जंगलों और पहाड़ों से घिरा हुआ है, जो तीर्थयात्रियों को आध्यात्मिक शांति के साथ-साथ प्राकृतिक सुंदरता का अनुभव भी प्रदान करता है।
तीर्थ यात्रा के लिए मुख्य बातें
- विशाल प्रतिमा तक पहुँचने के लिए लगभग 700 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। यह चढ़ाई श्रद्धालुओं के लिए एक तपस्या के समान मानी जाती है।
- यह दिगंबर जैन परंपरा का एक महत्वपूर्ण केंद्र है और यहाँ पर्व-त्योहारों पर बड़े मेले और अनुष्ठान आयोजित होते हैं।
बावनगजा कैसे पहुँचें (How to Reach)
- वायु मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा इंदौर (लगभग 150 कि.मी.) है। इंदौर से बस या टैक्सी द्वारा बड़वानी होते हुए बावनगजा पहुँचा जा सकता है।
- रेल मार्ग: निकटतम प्रमुख रेलवे स्टेशन खंडवा (लगभग 175 कि.मी.) या इंदौर (लगभग 150 कि.मी.) है।
- सड़क मार्ग: बड़वानी से बावनगजा तक नियमित बसें और टैक्सी उपलब्ध हैं। यह स्थान सड़क मार्ग द्वारा महाराष्ट्र और गुजरात के सीमावर्ती क्षेत्रों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।
४. गोपाचल पर्वत, ग्वालियर: रॉक-कट मूर्तियों का संग्रहालय
ग्वालियर किले की तलहटी में स्थित गोपाचल पर्वत पर सैकड़ों रॉक-कट जैन मूर्तियाँ हैं, जो जैन कला और मूर्तिकला का एक अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। यह स्थल 14वीं और 15वीं शताब्दी की कला का साक्षी है।
प्रमुख विशेषताएँ और महत्व
- विशाल रॉक-कट मूर्तियाँ: यहाँ चट्टानों को काटकर अनेक विशाल प्रतिमाएँ बनाई गई हैं, जिनमें भगवान आदिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर स्वामी की मूर्तियाँ प्रमुख हैं।
- सबसे बड़ी मूर्ति: गोपाचल पर्वत पर स्थापित भगवान आदिनाथ की 42 फीट ऊँची बैठी हुई प्रतिमा भारत की सबसे बड़ी रॉक-कट जैन प्रतिमाओं में से एक है।
- ऐतिहासिक संरक्षण: यह स्थल ऐतिहासिक रूप से मुगल शासकों के हमलों के बावजूद संरक्षित रहा, हालाँकि कुछ मूर्तियों को नुकसान पहुँचाया गया था, जिन्हें बाद में जीर्णोद्धार किया गया।
तीर्थ यात्रा के लिए मुख्य बातें
- मूर्तियों का यह समूह ग्वालियर किले की दीवारों के साथ फैला हुआ है, इसलिए किले के भ्रमण के दौरान इसे आसानी से देखा जा सकता है।
- यह स्थल पुरातत्व और इतिहास के छात्रों के लिए विशेष रुचि का केंद्र है, जो मध्यकालीन भारतीय जैन कला की भव्यता को दर्शाता है।
गोपाचल पर्वत कैसे पहुँचें (How to Reach)
- वायु मार्ग: ग्वालियर का अपना राजमाता विजया राजे सिंधिया हवाई अड्डा (GWL) है, जो देश के प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।
- रेल मार्ग: ग्वालियर जंक्शन (Gwalior Junction - GWL) एक प्रमुख रेलवे स्टेशन है, जो दिल्ली-चेन्नई और दिल्ली-मुंबई रेल मार्गों पर स्थित है।
- सड़क मार्ग: गोपाचल पर्वत (ग्वालियर किला) शहर के केंद्र में है और स्थानीय ऑटो, टैक्सी द्वारा शहर के किसी भी हिस्से से आसानी से पहुँचा जा सकता है।
५. खजुराहो के जैन मंदिर, छतरपुर: कला और शिल्प का विश्व धरोहर
खजुराहो, अपनी शानदार हिंदू मंदिरों के लिए विश्व प्रसिद्ध है, लेकिन यहाँ स्थित जैन मंदिरों का समूह भी उतना ही उत्कृष्ट और महत्वपूर्ण है। ये मंदिर चन्देल शासकों के शासनकाल के दौरान 10वीं और 11वीं शताब्दी में बनाए गए थे।
प्रमुख विशेषताएँ और महत्व
- पूर्वी समूह: खजुराहो के जैन मंदिर पूर्वी समूह में स्थित हैं। इस समूह में लगभग 31 दिगंबर जैन मंदिर हैं, जिनमें से तीन प्रमुख मंदिर दर्शनीय हैं।
- प्रमुख मंदिर: इनमें पार्श्वनाथ मंदिर (सबसे बड़ा), आदिनाथ मंदिर और शांतिनाथ मंदिर शामिल हैं, जो अपनी जटिल नक्काशी और मूर्तिकला के लिए जाने जाते हैं।
- कलात्मक भव्यता: इन मंदिरों की दीवारें यक्षियों, सुर-सुंदरियों और जैन देवताओं की उत्कृष्ट मूर्तियों से सजी हुई हैं, जो चन्देल कला की उच्चतम कारीगरी को दर्शाती हैं।
तीर्थ यात्रा के लिए मुख्य बातें
- शांतिनाथ मंदिर अपनी 14 फीट ऊँची खड़ी प्रतिमा के लिए प्रसिद्ध है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह चमत्कारी है और लगभग 1028 ईस्वी में स्थापित की गई थी।
- यह यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल का हिस्सा है, इसलिए यहाँ विदेशी पर्यटकों का भी बड़ा जमावड़ा रहता है, जो इसकी सांस्कृतिक महत्ता को बढ़ाता है।
खजुराहो कैसे पहुँचें (How to Reach)
- वायु मार्ग: खजुराहो का अपना खजुराहो हवाई अड्डा (HJR) है, जो दिल्ली और वाराणसी जैसे शहरों से जुड़ा हुआ है।
- रेल मार्ग: निकटतम रेलवे स्टेशन खजुराहो (KURJ) है, हालाँकि एक बड़ा जंक्शन स्टेशन हरपालपुर (Harpalpur) या झाँसी (JHS) है, जहाँ से टैक्सी/बस लेनी पड़ती है।
- सड़क मार्ग: खजुराहो छतरपुर (लगभग 45 कि.मी.) से जुड़ा हुआ है और मध्य प्रदेश के अन्य प्रमुख शहरों से राज्य परिवहन की बसों द्वारा अच्छी तरह से पहुँचा जा सकता है।
६. मुक्तागिरि, बैतूल: अरावली पर्वतमाला की शांति
बैतूल जिले में महाराष्ट्र की सीमा के पास स्थित मुक्तागिरि, दिगंबर जैन धर्म का एक सिद्ध क्षेत्र है। यह लगभग 108 छोटे-बड़े मंदिरों का एक समूह है, जो एक झरने और हरी-भरी वादियों के बीच स्थित है।
प्रमुख विशेषताएँ और महत्व
- मोक्ष भूमि: यह माना जाता है कि यहाँ 3.5 करोड़ मुनियों ने तपस्या कर मोक्ष प्राप्त किया था, जिसके कारण इसे 'मुक्तागिरि' (मुक्ति का पर्वत) कहा जाता है।
- 108 मंदिर: यहाँ स्थित 108 मंदिरों में से मुख्य मंदिर भगवान पार्श्वनाथ को समर्पित है, जिनकी श्याम रंग की अतिशयकारी प्रतिमा स्थापित है।
- जलप्रपात का सौंदर्य: यहाँ एक सुंदर झरना है, जिसे अक्सर 'झरना मंदिर' कहा जाता है। यह झरना बारिश के मौसम में मंदिर परिसर को और भी मनमोहक और शांत बना देता है।
तीर्थ यात्रा के लिए मुख्य बातें
- यह क्षेत्र आध्यात्मिक शांति और प्रकृति प्रेमियों के लिए एक आदर्श स्थान है, जहाँ पहाड़ों की शांति में बैठकर तपस्या का अनुभव किया जा सकता है।
- मंदिरों तक पहुँचने के लिए एक आसान पहाड़ी मार्ग है, और श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए आधुनिक धर्मशालाएँ और भोजनशालाएँ उपलब्ध हैं।
मुक्तागिरि कैसे पहुँचें (How to Reach)
- वायु मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा नागपुर (लगभग 90 कि.मी.) है, जो महाराष्ट्र में स्थित है, और दूसरा विकल्प भोपाल (लगभग 250 कि.मी.) है।
- रेल मार्ग: निकटतम रेलवे स्टेशन बैतूल (लगभग 80 कि.मी.) या महाराष्ट्र में स्थित अमरावती (लगभग 95 कि.मी.) है।
- सड़क मार्ग: मुक्तागिरि, नेशनल हाईवे 69 से जुड़ा हुआ है। बैतूल, अमरावती और नागपुर से यहाँ के लिए नियमित बस और टैक्सी सेवाएँ उपलब्ध हैं।
मध्य प्रदेश में पिछले 5 वर्षों में पर्यटक आगमन के आंकड़े
मध्य प्रदेश में धार्मिक पर्यटन की बढ़ती लोकप्रियता का प्रमाण राज्य में पर्यटक आगमन के आंकड़ों से मिलता है। कोविड-19 महामारी के कारण 2020 और 2021 में संख्या में भारी गिरावट आई, लेकिन 2022 और 2023 में रिकॉर्ड तोड़ वृद्धि दर्ज की गई, जो राज्य के पर्यटन क्षेत्र की शानदार रिकवरी को दर्शाती है।
वर्ष | कुल पर्यटक आगमन (घरेलू + विदेशी) |
---|---|
2023 | 11.21 करोड़ (लगभग 112.1 मिलियन) |
2022 | 3.41 करोड़ (लगभग 34.1 मिलियन) |
2021 | 2.56 करोड़ (लगभग 25.6 मिलियन) |
2020 | 2.14 करोड़ (लगभग 21.4 मिलियन) |
2019 | 8.90 करोड़ (लगभग 89.0 मिलियन) |
(स्रोत: मध्य प्रदेश पर्यटन बोर्ड के आंकड़े, विभिन्न वर्षों की पर्यटन सांख्यिकी रिपोर्टों पर आधारित।)
निष्कर्ष
मध्य प्रदेश की भूमि जैन धर्म के लिए अमूल्य धरोहर है। कुंडलपुर के 'बड़े बाबा' की विशालता हो या सोनागिरि के 77 श्वेत मंदिरों की शांति, बावनगजा की विराट एकाश्म प्रतिमा हो या खजुराहो की उत्कृष्ट कला, ये तीर्थस्थल न केवल आस्था के केंद्र हैं बल्कि भारतीय वास्तुकला और मूर्तिकला के उत्कृष्ट नमूने भी हैं। राज्य सरकार के प्रयासों और 'महाकाल लोक' जैसी परियोजनाओं की सफलता ने धार्मिक पर्यटन को नया आयाम दिया है, जिसके परिणामस्वरूप 2023 में पर्यटकों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। मध्य प्रदेश तीर्थयात्रा और पर्यटन के लिए एक ऐसा गंतव्य है जहाँ इतिहास, कला और अध्यात्म का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। इन तीर्थों की यात्रा मन को शांति और आत्मा को अद्वितीय ऊर्जा प्रदान करती है। इसलिए, यदि आप शांति और अध्यात्म की तलाश में हैं, तो 'अतुल्य मध्य प्रदेश' आपका इंतजार कर रहा है।
अस्वीकरण (Disclaimer)
यह लेख विभिन्न ऑनलाइन स्रोतों, सरकारी पर्यटन विभागों की जानकारी और जैन समुदाय की मान्यताओं पर आधारित है। तीर्थ स्थलों तक पहुँचने के मार्गों और पर्यटक आंकड़ों में समय के साथ परिवर्तन संभव है। यात्रा की योजना बनाने से पहले, कृपया नवीनतम जानकारी के लिए संबंधित तीर्थ क्षेत्र समितियों और परिवहन प्राधिकरणों से संपर्क करें। लेखक या प्रकाशक यात्रा के दौरान होने वाली किसी भी असुविधा या जानकारी में भिन्नता के लिए जिम्मेदार नहीं हैं।
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